शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

जिन्दगी बख्शी है


ए मेरे मालिक -
- जिन्दगी बख्शी है
तो जीने का सलीका भी बख्श
- ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक
तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श
- सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे
ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श
- किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से
ऐसा अहसास भी तू मुझे बख्श
- आपके चरणकमल में मैं लगा रहूँ
हे दाता ऐसा ध्यान भी बख्श
- रिश्ते जो बनाये मेरे मालिक
उनमें अटूट प्यार तू भर
- ज़िम्मेदारियाँ बख्शी हैं मेरे पालनहार
तो उनको निभाने की समझ भी बख्श
- बुद्धि बख्शी है मेरे मालिक तो
' विवेक बख्श कर एक और अहसान कर दे
- जो कुछ है वो सब तेरा है तो
फिर इस मेरी "मैं" को भी बख्श

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें