गुरू एक तेज हे ,
जिनके आते ही सारे संशय के
अंधकार खतम हो जाते हे ।।
गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे
मिलती है तो पार हो जाते हे ।।
गुरू वो नदी हे जो निरंतर
हमारे प्राण से बहती हे ।।
गुरू वो सत् चित् आनंद हे
जो हमे हमारी पहचान देता हे ।।
गुरू वो बांसुरी हे जिसके बजते ही
अंग अंग थीरक ने लगता हे ।।
गुरू वो अमृत हे जिसे पी के
कोई कभी प्यासा नही रहेता ।।
गुरू वो मृदंग हे जिसे बजाते ही
सोहम नाद की झलक मिलती हे ।।
गुरू वो कृपा हे जो सिर्फ कुछ
सद शिष्यों को ही विशेष रूप में
मीलती है ।।
गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्यमें हो ,
उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही।
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बुधवार, 19 अगस्त 2015
गुरू एक तेज ह
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